...

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क्योकि मैं पुरुष हूँ
दिल की बात दिल मे रखकर,
ऊपर से हरदम मुस्कुराता हूँ,
क्योकि मैं पुरुष हूँ

मैं घुटता हूँ, मैं पिसता हूँ,
भीतर ही भीतर रोता हूँ,
पर कुछ कह नही पता हूँ,
क्योकि मैं पुरुष हूँ

अपेक्षा के बोझ से लदा,
माँ के सपनो का आधार हूँ,
मुझको चलते रहना है क्योकि,
पिता की उम्मीद का मीनार हूँ,
क्योकि मैं पुरुष हूँ

पत्नी की इच्छा,बच्चो की ख्वाहिश,
माँ का सपना,पिता की उम्मीदो का पहाड़ हूँ
मैं परिवार का अभिमान हूँ,
प्यार लुटाता हूँ हर किसी पर,
फिर भी कुछ नीच शैतानो की वजह से,
मैं नफरत और घृणा का शिकार हूँ,
क्योकि मैं पुरुष हूँ
©Rohan Mishra (alfaaz_rohu_ke)

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© alfaaz_rohu_ke