क्योकि मैं पुरुष हूँ
दिल की बात दिल मे रखकर,
ऊपर से हरदम मुस्कुराता हूँ,
क्योकि मैं पुरुष हूँ
मैं घुटता हूँ, मैं पिसता हूँ,
भीतर ही भीतर रोता हूँ,
पर कुछ कह नही पता हूँ,
क्योकि मैं पुरुष हूँ
अपेक्षा के बोझ से लदा,
माँ के सपनो का आधार हूँ,
मुझको...
ऊपर से हरदम मुस्कुराता हूँ,
क्योकि मैं पुरुष हूँ
मैं घुटता हूँ, मैं पिसता हूँ,
भीतर ही भीतर रोता हूँ,
पर कुछ कह नही पता हूँ,
क्योकि मैं पुरुष हूँ
अपेक्षा के बोझ से लदा,
माँ के सपनो का आधार हूँ,
मुझको...