"क्यों!"
क्यों परिन्दो को देख के
खुद को कोशता है तू
क्यू मंजिलो की उचाइयों से
खुद को रोकता है तू...
सपने जो बुने है तूने हजारो
वो जरूर पुरे होंगे
क्यू ना होने के डर से
खुद को आग में झोकता है तू...
क्यू खुद से रूथ के
खुद को...
खुद को कोशता है तू
क्यू मंजिलो की उचाइयों से
खुद को रोकता है तू...
सपने जो बुने है तूने हजारो
वो जरूर पुरे होंगे
क्यू ना होने के डर से
खुद को आग में झोकता है तू...
क्यू खुद से रूथ के
खुद को...