...

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चलती-फिरती लाश
हम बढ़ रहे हैं,
अग्रसर हैं विकास की ओर।
सबसे तेज़ बढ़ती अर्थव्यवस्था
के भागीदार हैं।
मगर, मगर किन मूल्यों पर
बढ़ रहे हैं हम।

उधर कोई बेटी शिकार हो गयी,
कुछ दरिंदो की हवस का।
तार-तार हो गयी उसकी आबरू,
हम निर्लज्ज मूकदर्शक बन खड़े रहे।
मगर,हम बढ़ रहे हैं।

अस्पताल की खाट पर पड़ा,
वो लड़ता रहा ज़िन्दगी की जंग
वो जूझता रहा
हम तमाशा करते रहे।
वो तील तील कर मरता रहा।
हम तस्वीरों में व्यस्त रहे।
उसने मौत का दामन थामा
हमने ख़ामोशी का।
मगर हम बढ़ रहे...