ज़माना
क्या ज़माना आ गया है, इंसान भी शत्रु बना है,
हमारे ही घर में हमें रहना मना है,
वो काटें वन, जंगल, उनके मन में लोभ है,
उनके इस व्यवहार के कारण हमारे मन में क्षोभ है,
जब देखूं मैं घर उजड़ते हुए अपना, आंखों से नीर बहता है,
चली जाऊं दूर कहीं जहां कोई ना हो, दिल-दिमाग बस यही कहता है,
मेरी व्यथा सुनाऊं किसे, बस एक तुम...
हमारे ही घर में हमें रहना मना है,
वो काटें वन, जंगल, उनके मन में लोभ है,
उनके इस व्यवहार के कारण हमारे मन में क्षोभ है,
जब देखूं मैं घर उजड़ते हुए अपना, आंखों से नीर बहता है,
चली जाऊं दूर कहीं जहां कोई ना हो, दिल-दिमाग बस यही कहता है,
मेरी व्यथा सुनाऊं किसे, बस एक तुम...