...

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तेरी मर्ज़ी
भाग्य है,या भाग्यशाली,जो इस शक्ति से आज हम सक्षम है
जो पाकर भी,कदर नहीं है,कहते काश वो हो,ये भी कम है
जो थोड़े समझते है,वो है लाचार ,बातों से जग में ,हाहाकार
कब सुधरेंगे इनकी बातें,कब बदलेगा इनका समहर व्यव्हार

अपनो को समय नहीं हम दे पाते,औरों ने जैसे खरीदा है
क्या उम्र हमारी,उनकी है?छोड़,सबको जवाब सीधा देना है
यह खेल बन चुका है,जो हर कोई बड़ा या छोटा खेल रहा है
अपनी खराबी बढ़ रही,साथ में ये बदलाव भी फ़ैल रहा है

हमारी सिफारिश आजजन को,तो कानों में जैसे चुबती है
हवा दूषित,भाष्य की बनी माहौल इन्हें जैसे बड़ी खुबती है
नजर,सोच,बात बदलो और देखो दुनिया ही बदल जाएगी
जो अपवाणी करती अलोचना आज,कल शाबाशी होगी
© ADITYA PANDEY©