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दर्पण
#WritcoPoemPrompt53
दर्पण है एक कमरे में
जो मुझे है मुझको दिखाता रहता
हो जाता है घमंड जब मुझको
मेरी वास्तविकता मुझे समझाता रहता
इससे मै अपनी कमिया देखता
और उनको फिर सुलजाता रहता
मुझे बदलने का राह दिखाए
सूरत मेरी मुझे दिखाए
ना कोई है धोखा देता
जैसा लेता वैसा देता
ना कोई सजावट मुझपे करता
ना सच कहने से कभी ये डरता
जीवन भर मेरे रंग बदलते रहते हैं
उनको ये समाता रहता
आईना मुझको मेरे कमरे का
मेरा चेहरा मुझको दिखाता रहता।।
© RAHUL PANGHAL
दर्पण है एक कमरे में
जो मुझे है मुझको दिखाता रहता
हो जाता है घमंड जब मुझको
मेरी वास्तविकता मुझे समझाता रहता
इससे मै अपनी कमिया देखता
और उनको फिर सुलजाता रहता
मुझे बदलने का राह दिखाए
सूरत मेरी मुझे दिखाए
ना कोई है धोखा देता
जैसा लेता वैसा देता
ना कोई सजावट मुझपे करता
ना सच कहने से कभी ये डरता
जीवन भर मेरे रंग बदलते रहते हैं
उनको ये समाता रहता
आईना मुझको मेरे कमरे का
मेरा चेहरा मुझको दिखाता रहता।।
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