...

5 views

*** तसब्बुर ***
*** ग़ज़ल ***
*** तसब्बुर ***

" हम याद जऱा तुम्हें करेंगे ,
तेरी बात जऱा खुद से करेंगे ,
मुख्तलिफ मसले फिर क्या किया जाये ,
हम खुद में तुम्हें खोजते फिरेंगे ,
रास आये हयाते-ए-हिज्र
फिर वो बात कहां मुलाक़ात कहा ,
सवालात जो करु फिर वो बात कहां ,
मिलना हैं की बिछड़ना हैं वो ,
मुख्तलिफ सवगात हैं ,
मिल की बिछड़ना ना परे ,
ऐसे में हमारी गुफ्तगू कहा ,
सब आईने के दस्तूर पुछते हैं ,
अभी तुम से मेरा मिलना हुआ कहा ,
कोई रुख करु तो फिर कोई बात हैं ,
बुझते जज्बातों के वो दौर कहा ,
यु खोना भी तूझे खोना है ,
फिर तुझसे मैं ग़ैर इरादातन फिर मिला कहां ,
कोई बात आज भी आईने के दस्तूर लिये‌ बैठा हैं ,
मिलते तो पुछते तुम से कौन शक्ल अख्तियार किए बैठे हो ,
जो तसब्बुर के ख्यालों से तुम हु-ब-हू कहीं नहीं मिलते ."

--- रबिन्द्र राम




© Rabindra Ram