...

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तन और मन
किस मंदिर की बात करू मैं ,
तन उधर मुझे लेकर जाता ,

पर मन से जो में नाम उचारू ,
ये तन शिवालय हो जाता ,

ना माला फेरी ना ही भजन गाये ,
समझ सबका दर्द पाती लिख जाता

परोपकार मे सिमरू उसको मैं ,
उठते हर हाथ परमात्मा मिल जाता ,

कण कण मे तो मेरे रमा है वो ,
क्यों बाहर उसको ढूढ है आता ,
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