हर रात काली हर रात मृत
कितनी ही रातें तेरे इंतज़ार में जाग कर काटी हैं
मगर हर रात काली हर रात मृत ही हाथ आई है,
बेहिसाब जज़्बात बेइंतेहा तड़प दिल में सुलगते हैं
आंखों में ख़्वाब नहीं आंसुओं की झड़ी हाथ आई है,
रात ही काली नहीं, नसीब भी काला संग पाया...