...

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यादों की पुड़िया
उस वक्त से एक चीज चुराई थी
पुड़िया बना कर जेब में रखी
फिर जाके अलमारी में बंद कर दिया था
आज वो पुड़िया निकालनी है

पापा की साइकिल पर तीन सीट थे
आगे मैं, बीच में पापा और पीछे भईया
आज कार खरीदी है मैने
अब सीट चार हैं, भागती भी तेज है

अब ड्राइवर मैं हूं, पापा नहीं
पापा शांत बैठे हैं बगल वाली सीट पर
शायद उनकी पुड़िया खुल गई है
मां भी एक पुड़िया में आंसू समेट रही है

मेरी पत्नी पीछे मां के साथ बैठी है
ये सब कही दूर से देख रही है।
पर एक पुड़िया उसकी भी खुली होगी
फोन पर बात करते हुए भावुक हो रही थी

ऐसा ही कुछ लगा था जब मोटरसाइकिल ले के आया था
तब अकेला था, और भावुकता से ज्यादा चपलता थी
आज का मंजर कुछ ऐसा है की इसको चुरा लूं
शायद भविष्य में ये पुड़िया खुले कभी।

© अंकित राज "रासो"

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