...

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मेरा आसमां कहां
स्त्रियां तो त्यागमयी सदैव रही है
समाज ने सदैव उसे नाम दिये हैं
प्रकृति ने उन्हें अपना स्वरूप दिया है
समाज ने सदैव उसे प्रदूषित किया है
विकृति जन्म लेती है विध्वंस करती है
प्रकृति का ये एक विध्वंसक स्वरूप है
स्त्रियां भी कभी कभी विध्वंसक होती हैं
काली दुर्गा रूप में राक्षसों की संहारक हैं
जो घर की शोभा थी कभी आज सक्षम हैं
पर क्या उनके मन में अब भी असंतोष है
हर जमीं को अंतरिक्ष नहीं आस्मां चाहिए