...

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तुम
प्रेम के भाषा से
सावले सलोने से
अधर्म को न सहते तुम ।।

भगवा के रंगों में
एकतान के गानों में
मिल जाए वो कान्हा तुम ।।

मुरली के साँसों से
राधा के प्राणों से
सीता के स्वामी तुम।।

अंधेर गलियों के
कलयुग के रलियों में
कलकी के राम हो तुम ।।

वेदों की गरिमा से
कृष्ण की महिमा से
गीता के गिरधारी तुम।।

मीरा के मनोहर से
हार को हरने
हर युग के मनोहार तुम।।

छलो तुम मुस्कान से
सताओं नन्द लाला से
मेरे माखन चोर हो तुम।।

प्रेम की गीतों से
प्रीत के रितो से
मेरे मनमोहन हो तुम।।

©कलम की दिवानी
© KALAMKIDIWANI