...

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निकलें हैं
ग़म पिरोकर गले का हार करके निकलें हैं ,
हम मलंग कुछ बेचने सर -ए - बाज़ार निकलें हैं।

लगाओ कीमतें बढ़कर तुम्हारी जेब भारी है ,
दिल हथेली पर लिए हम बाज़ार निकलें हैं।

बनाके ताजमहल आश़िकों में आगे, सुना कोई
शाहज़हांन निकलें हैं ,
होगें, हम उनसे बढ़के आश़िक हैं, तोड़ने आसमान
से चांद निकलें हैं।

हुए मजनूं,बने रांझें,कुछ फ़रहाद निकलें हैं ,
हमारा इश्क़ एक तरफा था पता था इसमें जान निकले है ।

लगाकर ठोकरों में दिल अदा से वो हरबार निकलें हैं
करें क्या 'ख़ाक '?
उसी पर टूटकर मरने की हस़रत हरबार निकले है।।

© khak_@mbalvi