...

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बाबासाहेब "अंबेडकर"
वर्ण व्यवस्था के जाल ने,
तपाया खूब एक इंसां को,
तोड़कर बेड़ियाँ गुलामी की,
लिख गया वो संविधान को,

तेज़ था उसके मुख पर ऐसा,
विरोधी थे सब उससे डरते,
बने जो थे ग़ुलाम पाखंड के,
उन गुलामों की आवाज़ बना,

हो चाहें पुरुष या महिला ही,
सबको बराबर का हक़ दिया,
ऊपर उठाकर धर्म जात से,
इंसान को इंसान बना दिया,

© feelmyrhymes {@S}