" यादें उनकी यादों के "
कितनी यादें सज़ाए बैठा हूं
कब तलक पलकें बिछाए बैठा हूं
तुम ये न समझो
कि तुम्हारा खयाल नहीं,
ख़्वाब तेरे संजोता हूं
हर पल अपनी आंखों में
आहट तेरी आती सूनी सूनी रातों में।
कितने अरमान सज़ाए बैठा हूं
तेरी महरूम गलियों में
के तुम...
कब तलक पलकें बिछाए बैठा हूं
तुम ये न समझो
कि तुम्हारा खयाल नहीं,
ख़्वाब तेरे संजोता हूं
हर पल अपनी आंखों में
आहट तेरी आती सूनी सूनी रातों में।
कितने अरमान सज़ाए बैठा हूं
तेरी महरूम गलियों में
के तुम...