...

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प्रश्न
हमने जो हक आपको दिया वो निभाओगे क्या ?
अपने दर्द मे भी , हमे याद करोगे क्या ?
मन रह रह के मचलता है ।
जब भी बुलाऊंगी ,मिलने आओगे क्या?

कोई त्योहार ,कोई खुशी अच्छी नहीं लगती है ।
कोई संगीत ,कोई,छंद भाता नही है।
कभी हमारे साथ एक, बार दिवाली मनाओगे क्या?

कोई साज ,श्रृंगार के योग्य नहीं हम।
पहली बार हथेलियों में मेंहदी रचाई है ।
अपना नाम लिखाओगे क्या ?
जब भी बुलाऊंगी मिलने आओगे क्या?

मेरे मस्तिष्क में तंत्रिका ,हर दिन विद्रोह करती है ।
हर दिन मेरे समक्ष एक नया ,,प्रश्न लाकर खड़ा करती है ।
मेरे अनगिनत प्रश्नों के उत्तर दे पाओगे क्या ?
जब भी,,,
शिथिल सी हो गई है , हमारी हसीं ।
खिल उठेंगे हम भी रातरानी की तरह , आप दिनकर की पहली किरण बनोगे क्या ।
जब भी बुलाऊंगी ,,,

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© Sarthak writings