...

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तेरी बेरुखी :
बेवक़्त ही सहीं तेरे लिए
मैंने वक़्त निकाला तो था।
हमारे रिश्ते के जलते दिए में
मैंने इश्क़ का तेल डाला तो था।
तू बहती रही बेबाक़, बेफ़िक्र
हवा के तेज़ झोंके की तरह,
की माननी पड़ी तेरी गलतियाँ
खुदा के दर पे जाना जो था।
क्योंकि तेरे उस बेरुख से अंदाज़ को देखने
मौजूद महफ़िल में सारा ज़माना जो था।

©अkshर