...

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ओ मगरुर उस नू भी कोई चाल समझ बैठा!
बस इश्क़ इश्क़ करती रही
ना जाने क्यूं इंतज़ार करती रही
इश्क़ बहरूपिया है और कुछ नही
दिल दे वास्ते ख़ुद नू ठगती रही,

जो सुलगकर ख़ाक हुआ
उसे विछोह इश्क़ में कहती रही,
दिल जलया पर राख़ पर भी हक़ उसका
सोच सोच कर रंज ओ तंज सब सहती रही,

ओ तो वड्डा उसूलों वाला हैगा
ऐ दिल नू ही समझाती रह गई
सलीके प्यार दे सीख ही जावेंगा
इस गल्तफ़हमी नाल ही बह गई

ओ ना सीख्या दस्तूर ते समझा अल्फ़ाज़ा नू
तहरीर नू बस क़िताबी ज़बान समझ बैठा
साड़ा दिल निकल कर हाथां विच आ गया
ओ मगरुर उस नू भी कोई चाल समझ बैठा!


© Tarana 🎶