...

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गमलें वाला इश्क़
करो वादा की सच्चे इश्क़ ,में हम पड़ अगर जाएँ,,
मरासिम को निभायें हम ,वहीं दोनों ठहर जाएँ,,

ये चाहत है की जब हो इश्क़ ,तो गमले की मानिंद हो,,
भले इक फ़ल ना हों उस पे ,वो पर फ़ूलों से भर जाएँ,,

जड़े गमलें में पौधे की ,तो बस बढ़ती है वाज़िब सी,,
बढ़े फूले यूँ हीं वो इश्क़ ,हद से ना गुज़र जाएँ,,

शज़र हो दूर से सबको ,तो दिखना भी तो लाज़िम है,,
गमलें में खिलेंगे फ़ूल ,बस अपनी नज़र जाएँ,,

मैं अहसासों की दूँगा खाद, पानी वक्त का दूँगा
हवाओं से बचाना तुम ,,ना पत्ते ही बिख़र जाएँ,,

मरासिम-रिश्ते
मानिंद- जैसे
शज़र-पेड़
वाज़िब-लिमिट में

*विकास जैन व्याकुल*