...

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चुनाव के प्रचार हैं
धर्म को दें गालियां, झूठ पर भी तालियां
जुमले सारे ख़्वाबों के, जवाब सब सवालियां
भाषा, जाति संगठन, कुरीति के प्रसार हैं
और हैं ये कुछ नहीं, चुनाव के प्रचार हैं...
पार्टियों की दावतें, हर नीति पर बगावतें
गठबंधनों के रास्ते, जो जीत के हैं वास्ते
असली मुद्दे देश के, भेड़िए जो भेष के
मिट्टी में जो खो रहे, पदचिह्न अपने देश के
बदलाव की ये भ्रांतियां, विकास की ये क्रांतियां
कर्ज़ माफ़ी, मर्ज माफ़ी, मन के जो आसार हैं
और हैं ये कुछ नहीं, चुनाव के प्रचार हैं...
दाल, चावल, सब्ज़ियों के, गिर रहें हैं...