...

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यह कैसी प्रगति?
पहुंच कर चांद पर,
आदमी है बहुत इतराया।
अन्वेषण कर वहां की मिट्टी पर,
हर राष्ट्र ने अभिमान जताया।
चांद को छूने की कोशिश में ,
मानवता से नाता टूट गया।
ठोकर मारी उस ललना को,
भूख से व्याकुल उस नारी को,
जिसने दुधमुंहे बच्चे की खातिर,
फैलाए थे हाथ,
उस रईस के सामने,
भिक्षा मांगने को।
© mere ehsaas