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#स्वीकार
अगर -मगर कुछ तो कहा होगा?
उसने स्वीकार कुछ तो किया होगा?
ऐसे ही कहा जुड़ते है रिश्ते
उसने मेरा कुछ तो ख्याल किया होगा !
जब जब मेरे नयनों ने कोई ख्वाब देखा,
उसके रूप की प्रतिमा को हृदय के करीब पाया,
मगर वह जालिम मेरे हृदय पर पड़े घावों को पहचान नहीं पाया,
यही फ़ल्सफ़ा उसका मुझे समझ नहीं आया !
आज भी उसके दीदार में हर मोड़ पर नयनों को बिछाए बैठे हैं,
अपने हृदय में उसके आने की लौ जलाये बैठे हैं,
मगर उस बेवफ़ा को मेरी वफ़ा पर तरस न आया,
यही फ़ल्सफ़ा हमें अभी तक समझ न आया !!
उसके हृदय की आवाज़ को हम सुन न सके,
हजारों इल्जाम उसकी मोहब्बतों पर लगा बैठे,
यही गिला हमारी चाहतो को फ़ना कर बैठा,
अपनी बरबादीयों का मंजर मैं खुद ही बना बैठा !!
© Vishnukashyapji
उसने स्वीकार कुछ तो किया होगा?
ऐसे ही कहा जुड़ते है रिश्ते
उसने मेरा कुछ तो ख्याल किया होगा !
जब जब मेरे नयनों ने कोई ख्वाब देखा,
उसके रूप की प्रतिमा को हृदय के करीब पाया,
मगर वह जालिम मेरे हृदय पर पड़े घावों को पहचान नहीं पाया,
यही फ़ल्सफ़ा उसका मुझे समझ नहीं आया !
आज भी उसके दीदार में हर मोड़ पर नयनों को बिछाए बैठे हैं,
अपने हृदय में उसके आने की लौ जलाये बैठे हैं,
मगर उस बेवफ़ा को मेरी वफ़ा पर तरस न आया,
यही फ़ल्सफ़ा हमें अभी तक समझ न आया !!
उसके हृदय की आवाज़ को हम सुन न सके,
हजारों इल्जाम उसकी मोहब्बतों पर लगा बैठे,
यही गिला हमारी चाहतो को फ़ना कर बैठा,
अपनी बरबादीयों का मंजर मैं खुद ही बना बैठा !!
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