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कब बड़े हो गए हम....
कब बड़े हो गए हम....
बस कल की ही तो बात थी, वो पहली बार चलने से, स्कूल में एडमिशन लेना, नए दोस्तों के साथ, वो हाथों में हाथ।
सफर निकल पड़ा था मंज़िल की और जाना कहाँ पता नहीं..
ना वक्त की अटकल थी और नाही डॉट का डर, बेफिक्री में जीते थे,जीते थे हर पल। चिल्लर जोड़कर बड़े सपने पा लेते थे, कभी आइस क्रीम, टॉफ़ी, और कभी चॉकलेट यही तो ज़िन्दगी थी यारों....
हर वक़्त, हर जगह, हर किसी से पैसे मिल जाते, सब बहुत प्यार करते और बहुत सारी चीज़ दिलाते।दुनिया उन आँखों से परियों की कहानी से कम नहीं लगती...