...

4 views

जब भी मैं तुझको याद आऊँ
जब भी मैं तुझको याद आऊँ 
तू ये सोच के दिल मत छोटा करना 
मेरे-तेरे बीच न जाने कितना ज़ुबानों के दरिया हैं 
कितनी तहज़ीबों के समंदर 
धूप की झीलें 
छाँव के जंगल 
तू इस दूरी से मत घबरा 
क़ुर्बत का मौसम तो वही है, 
देख तो दिल के अंदर! 
दूरी चाहे जितनी भी हो 
मैं तो तुझसे दूर नहीं हूँ 
ढलता सूरज बनकर तेरे घर में आख़िर कौन आता है 
घटते चाँद का भेस बदल कर 
तेरी खिड़की पर मैं ही दस्तक देता हूँ 
और वो बूढ़ा पेड़ भी मैं हूँ 
जिसका साया 
झुक कर तेरे सर का बोसा लेता है 
जब 
जब भी मैं तुझको याद आऊँ 
मरियम तू बस 
ढलते सूरज, 
घटते चाँद की जानिब यूँ ही देख लिया कर 
और उस पेड़ की मीठी छाँव से अपने आँसू पोंछ के आगे बढ़ जाया कर..