...

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मै लड़की हूं जिस्मों का खेल नहीं
कब तक हैवानियत यूँ ही रहेगी जारी
कब तक खुलेआम घूमेंगे बलात्कारी।

अशांत है मन रगों में है गुस्से की चिंगारी
फिर एक मासूम की मासूमियत है हारी।

कितना तड़पी होगी कितना चीखी होगी वो बेचारी
जब उसकी आँखें नोच रहा था वो दुराचारी।

क्या बीती होगी उस नन्हीं जान पर
सोचकर हो जाता है ये दिल भारी।

कैसे उस दुष्ट को करने में शर्म न आई
ये सोच कर हो जाता है मन भरी

फुट फुट कर रोया होगी वो मां
जब...