...

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बेहाल
लहरों की आश में समुद्र बहा दिये,
बसंत ऋतु मे पतझड़ ला दिये,

ठहराव के किनारे कमजोर निकले
जब आह भरते हुए दर्द भरे अल्फाज न निकले,
किस गम के मारे ये सबने पूछा
मगर दिल कब हारे ये मालूम न निकला,
ग्रस्त है कई कोडो से अब तो
पूछने वाला बेहाल न निकला,
सीसक-2 कर रो भी नहीं सकते
कम जिस्म का पानी निकला,
बहतरीन बनने के काश मे
होसला कमाल का उभरा,
साये मे तेरे खूब सोये है
छाव का बसेरा ख़ुद मधहोश निकला।