तुम्हें ढंग से मुस्कुराना भी नहीं आता...
तुम्हें तो सितम ढाना भी नहीं आता।
कोई रिश्ता निभाना भी नहीं आता।।
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तुम क्या खाक हंसोगे मेरे हालात पे,
तुम्हें ढंगसे मुस्कुराना भी नहीं आता।।
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तुम्हारे रुख पे अकड़फ़ूँ नहीं दिखती,
तुम्हें रकीबी...
कोई रिश्ता निभाना भी नहीं आता।।
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तुम क्या खाक हंसोगे मेरे हालात पे,
तुम्हें ढंगसे मुस्कुराना भी नहीं आता।।
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तुम्हारे रुख पे अकड़फ़ूँ नहीं दिखती,
तुम्हें रकीबी...