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ये कैसा प्रेम है
जमाने में शब्दों को बयां क्या करू,
जिन्दगी ये निशब्द होते जा रहा है।
कहने को तो सब अपने है पर,
अपनापन धीरे- धीरे खत्म होते जा रहा है।
अपनी खुशियों के लिए लोग आजकल,
अपनो की खुशियां छीन लेते है।
हे श्री कृष्ण किधर गये आप ,
दुनिया में स्वार्थ बढ़ते जा रहा है।
जो कहा था आपने प्रेम ही समर्पण को,
वही प्रेम अब जिस्मो में दिख रहा है।
ये कैसा प्रेम है भगवान,
जो पैसों के संग बिक रहा है।
© Savitri..
जिन्दगी ये निशब्द होते जा रहा है।
कहने को तो सब अपने है पर,
अपनापन धीरे- धीरे खत्म होते जा रहा है।
अपनी खुशियों के लिए लोग आजकल,
अपनो की खुशियां छीन लेते है।
हे श्री कृष्ण किधर गये आप ,
दुनिया में स्वार्थ बढ़ते जा रहा है।
जो कहा था आपने प्रेम ही समर्पण को,
वही प्रेम अब जिस्मो में दिख रहा है।
ये कैसा प्रेम है भगवान,
जो पैसों के संग बिक रहा है।
© Savitri..
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