देखो..! ज़िंदगी अपनी हम हार बैठे हैं
देखो..! ज़िंदगी अपनी हम हार बैठे हैं
मुद्दत से जो यूंही हम बीमार बैठे हैं
उसे ना ख़बर है, ना ही आता है इयादत को
इक हम हैं जो बे-वजह तलब-गार बैठे हैं
इज़हार-ए-इश्क़ करना बड़ी ही फजीहत है
देखो...! महफ़िल में अब शर्मशार बैठे हैं
नफ़रत, बुग़्ज़, अदावत से नहीं कुछ हासिल
मौत के मुँहाने पर सब दर-गुज़ार बैठे हैं
तेरे मुँह पर तेरा, मेरे मुँह पर...
मुद्दत से जो यूंही हम बीमार बैठे हैं
उसे ना ख़बर है, ना ही आता है इयादत को
इक हम हैं जो बे-वजह तलब-गार बैठे हैं
इज़हार-ए-इश्क़ करना बड़ी ही फजीहत है
देखो...! महफ़िल में अब शर्मशार बैठे हैं
नफ़रत, बुग़्ज़, अदावत से नहीं कुछ हासिल
मौत के मुँहाने पर सब दर-गुज़ार बैठे हैं
तेरे मुँह पर तेरा, मेरे मुँह पर...