एक नज़्म-कैलेंडर
दरवाजे के बाहर
दस्तक दे रहा है
नया साल,
और बीता हुआ बरस
सर झुकाए
ख़ामोशी से
अपना बोरिया बिस्तर बाँधकर
हमसे विदा ले रहा है ।
कैलेन्डर का आखिरी पन्ना
इस आखिरी घड़ी में
बड़ी हसरत से
घर की उस दीवार को
नम आँखों से देख रहा है
जिस पर उसने
एक बरस की
अपनी ज़िन्दगी गुज़ारी ।
पंखा ख़ामोश है दिसंबर की सर्दी में,
कैलेंडर को याद आ रहा है
गर्मियों में उसकी हवा के साथ
अठखेलियाँ करते हुए ,
कैसे छिल जाता था
दीवार का बदन
और दीवार सह लेती थी
अपने जिस्म के खरोंचों को,
ख़ुशी ख़ुशी
माफ़ कर देती थी
कैलेंडर और पँखे
दोनों को ,
एक माँ की तरह ।
ये दीवार अब
जान गई है कि
कैलेंडर का साथ अब
चंद...
दस्तक दे रहा है
नया साल,
और बीता हुआ बरस
सर झुकाए
ख़ामोशी से
अपना बोरिया बिस्तर बाँधकर
हमसे विदा ले रहा है ।
कैलेन्डर का आखिरी पन्ना
इस आखिरी घड़ी में
बड़ी हसरत से
घर की उस दीवार को
नम आँखों से देख रहा है
जिस पर उसने
एक बरस की
अपनी ज़िन्दगी गुज़ारी ।
पंखा ख़ामोश है दिसंबर की सर्दी में,
कैलेंडर को याद आ रहा है
गर्मियों में उसकी हवा के साथ
अठखेलियाँ करते हुए ,
कैसे छिल जाता था
दीवार का बदन
और दीवार सह लेती थी
अपने जिस्म के खरोंचों को,
ख़ुशी ख़ुशी
माफ़ कर देती थी
कैलेंडर और पँखे
दोनों को ,
एक माँ की तरह ।
ये दीवार अब
जान गई है कि
कैलेंडर का साथ अब
चंद...