...

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बिन दर्द गुज़र न पाया दिसंबर
दस्तानों में सिमट न पाया दिसंबर
पहाड़ों से उतर न पाया दिसंबर

चूम लिए हवा ने बर्फ के आरिज़
शराबी भी हो न पाया दिसंबर

कबूतर के परों की हल्की हरारत
फिर हल्के से लहराया दिसंबर

आंँसू कभी शीशा,आंँसू कभी पानी
ख्वाबों से लिपट न पाया दिसंबर

छूटे कुछ रिश्ते , टूटे कुछ नाते
बादलों सा गरज न पाया दिसंबर

सीने पे रख पांँव गुज़र गई दुनिया
बिन दर्द गुज़र न पाया दिसंबर

© manish (मंज़र)