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मानवता
जमीं, आसमां, छीन-झपट की ख्वाइश मन में पाल रहे हैं
शांति, बात के मुद्दों को हम बातों में ही टाल रहे हैं
पाकिस्तानी, तालीबानी, चीन, सीरिया या ईरानी
ऐसे नाम अनेकों हैं, जो दिखा रहे मन की मनमानी
देश बांटते लोग हों चाहे, आतंकी को रखने वाले
सबके सपने, सबके अरमां, सत्ता को हैं चखने वाले
भूख बढ़ी है क्यों इतनी, क्या मिट्टी को ही खाओगे?
मानव होकर कुछ मानवता के लक्षण अपनाओगे ?
तुमसे पहले कितने आए, तुम भी वैसे जाओगे
पर सोंचो तो जाने वाले, जाकर क्या कहलाओगे?
हिटलर, लेनिन, कार्ल मार्क्स या फ़िर बुद्ध बनोगे तुम?
गैरों से ही लड़ने वालों, ख़ुद से युद्ध जनोगे तुम?
युद्ध ज्ञान के मंथन का, इस मानव के परिवर्तन का
युद्ध काल से आगे का, खुद के कर्मों के दर्पण का
युद्ध भोग ना अभिलाषा का, बल्कि स्वयं के अर्पण का
युगों-युगों तक शंखनाद हो, ऐसे त्याग समर्पण का
आओ बैठो बात करो कुछ, ख़त्म करो ये नाराजी
खुद के चस्मे जेब में रखकर, बिना दांव और बिन बाज़ी
एक निर्णय, संकल्प करो एक, एक धरा के सपने का
एक मानवता हो सर्वोपरि, भेद-भाव ना अपने का
लिखते-पढ़ते इतिहासों को, बड़े हुए तब जाना है
एक सुनहरा अवसर है ये, इतिहासों को रचने का...
© Er. Shiv Prakash Tiwari