...

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ऐ कलम तू रुक जरा कुछ लिख सकु कुछ मिटा सकू
ए कलम तू रुक जरा कुछ लिख सके कुछ मिटा सकू।
ए दिल थोड़ी आवाज दे जो दर्द अपना जता सकू।

आंखे नम हरदम दुनियां को कुछ दिखला सकू।
ए जुबा तो तू रुक जरा मै कुछ बात सकू।

हर कदम पर एक जंग हौसला अजमा सकू।
अंधेरों को रोशन प्यार का दिया जल सकू।

अल्फ़ाज़ तो सबके पास दो लफ्ज़ समझा सकू।
जलते को क्या जलाना एक आवाज़ खुदा तक पहुंचा सकू।

शोर तो सीने में बहुत ख़ामोश हो के छुपा सकूं।
ए कलम तू रुक जरा कुछ लिख सकू कुछ मिटा सकू
© navneet chaubey