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वेश्यावृत्ति- एक शौक़ नहीं
शौक़ नहीं हर रोज नये कहारों का,
बिस्तर परे सिलवटें पहाडों का||
शौक़ नहीं मधु और मधुशालों का,
ना ही अर्ध नंग्न दुशालों का||
शौक़ नहीं रजवाड़ों, अफसर, आलो का,
दिल्ली में बैठे कुर्सी के रखवालो का||
खाने को जब सौंफ नहीं है,
नियमों का फिर खौफ नहीं है||
शर्मसार है नोटों पे बैठे चरखाधारी गाँधी का,
जहाँ बेटीयाँ हो कोई वस्तु मंडी का||
धिक्कार है मोदी के ऐसी हरियाली आंधी
का,
जहाँ खुले आम बेटीयों को नाम मिले "रंडी" का||
© Pakhi Vaibhav
बिस्तर परे सिलवटें पहाडों का||
शौक़ नहीं मधु और मधुशालों का,
ना ही अर्ध नंग्न दुशालों का||
शौक़ नहीं रजवाड़ों, अफसर, आलो का,
दिल्ली में बैठे कुर्सी के रखवालो का||
खाने को जब सौंफ नहीं है,
नियमों का फिर खौफ नहीं है||
शर्मसार है नोटों पे बैठे चरखाधारी गाँधी का,
जहाँ बेटीयाँ हो कोई वस्तु मंडी का||
धिक्कार है मोदी के ऐसी हरियाली आंधी
का,
जहाँ खुले आम बेटीयों को नाम मिले "रंडी" का||
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