...

76 views

वेश्यावृत्ति- एक शौक़ नहीं
शौक़ नहीं हर रोज नये कहारों का,
बिस्तर परे सिलवटें पहाडों का||

शौक़ नहीं मधु और मधुशालों का,
ना ही अर्ध नंग्न दुशालों का||

शौक़ नहीं रजवाड़ों, अफसर, आलो का,
दिल्ली में बैठे कुर्सी के रखवालो का||

खाने को जब सौंफ नहीं है,
नियमों का फिर खौफ नहीं है||

शर्मसार है नोटों पे बैठे चरखाधारी गाँधी का,
जहाँ बेटीयाँ हो कोई वस्तु मंडी का||

धिक्कार है मोदी के ऐसी हरियाली आंधी
का,
जहाँ खुले आम बेटीयों को नाम मिले "रंडी" का||

© Pakhi Vaibhav