एक खयाल...
मेरी खानाबदोशी का, जाने क्या, सबब होगा
हांफती सी इस ज़िंदगी में, ठहराव कब होगा...
उम्र गुज़र रही है बस किराए के आशियाने में
मेरे सर पर, अपनी छत का साया, कब होगा...
मिला था हाथ देखने वाला वो फ़कीर शहर में
कहा बक्शीश दे तेरा सितारा बुलंद जब होगा...
आज उसने मुझे याद किया...
हांफती सी इस ज़िंदगी में, ठहराव कब होगा...
उम्र गुज़र रही है बस किराए के आशियाने में
मेरे सर पर, अपनी छत का साया, कब होगा...
मिला था हाथ देखने वाला वो फ़कीर शहर में
कहा बक्शीश दे तेरा सितारा बुलंद जब होगा...
आज उसने मुझे याद किया...