...

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बहुत मुश्किल से तलाशा है सुकून को ज़माने के शोर में
बहुत मुश्किल से तलाशा है,
"सुकून" को ज़माने के शोर में,
कहीं किसी अनजान हवा के साथ,
उड़ ना जाए अगली भोर में,

अंधेरे के साथ सोहबत छूट गया,
जब मुंह मोड़ा रिवाजों की ओर से,
शुमार हो गया उस कलंक के साथ,
जो बंधा था तोहमत के छोर से,

अब आजाद हूं पर अकेला हूं,
बंदिशें तोड़ आया जो इतने जोर में,
बहुत मुश्किल से तलाशा है,
"सुकून" को ज़माने के शोर में!!



© Rohit Kumar Gond
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