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सपने बहुत डराई
माघ की सर्दी में
कंबल लगे प्यारी
गर्म-गर्म व्यंजनों
से होती है यारी
पर कमाने के नाम पर
घर छोड़ना भारी।
दिन में धूप गुनगुनी
रात में रजाई
अकेले को रात में
सपने बहुत डराई
जोड़ों को सुबह
देर से आए जगाई।
नहाने का पानी देख
बी पी ही बढ़ जाई
माघ रे माघ तू
खेल दुरुह रचाई
सपने वाले हैं मुश्किल में
हकीकत सोते रह जाई।।
© Mohan sardarshahari
कंबल लगे प्यारी
गर्म-गर्म व्यंजनों
से होती है यारी
पर कमाने के नाम पर
घर छोड़ना भारी।
दिन में धूप गुनगुनी
रात में रजाई
अकेले को रात में
सपने बहुत डराई
जोड़ों को सुबह
देर से आए जगाई।
नहाने का पानी देख
बी पी ही बढ़ जाई
माघ रे माघ तू
खेल दुरुह रचाई
सपने वाले हैं मुश्किल में
हकीकत सोते रह जाई।।
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