रात का नज़राना
तुझे एक हसीन रात का नज़राना दूं तो
तुम उस रात में कुछ अफसाने बुनना ,
गर उलझ गए एक दूजे की बातों में हम,
फिर नजरों को इज़हार का हक़ तुम देना,
कह न सको गर बात जुबां से फिक्र नहीं,
अपनी उंगली से दिल पर मेरे खत लिखना,
इनकार अगर तुम कर...
तुम उस रात में कुछ अफसाने बुनना ,
गर उलझ गए एक दूजे की बातों में हम,
फिर नजरों को इज़हार का हक़ तुम देना,
कह न सको गर बात जुबां से फिक्र नहीं,
अपनी उंगली से दिल पर मेरे खत लिखना,
इनकार अगर तुम कर...