उम्मीद
जितने चाहे आहट हो जा,
चाहे लागे अंत सफर का,
नामुमकिन की थाम लकुटिया
कभी चिढ़ाये भले निज सपना
त्यागे या फिर नगर जो अपना
भेंट तो होगी नित नवीन से
भेष भी होगा हर दिन अरभंगा
ठिनक जायेगा कभी कोई तारा
आएगा कही आशाओ का झोका
रोष ,कपट...
चाहे लागे अंत सफर का,
नामुमकिन की थाम लकुटिया
कभी चिढ़ाये भले निज सपना
त्यागे या फिर नगर जो अपना
भेंट तो होगी नित नवीन से
भेष भी होगा हर दिन अरभंगा
ठिनक जायेगा कभी कोई तारा
आएगा कही आशाओ का झोका
रोष ,कपट...