...

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सुनो! ओ दिल..
सुनो! ओ दिल..
वक्त तो मेरे लिए नहीं ठहर रहा
जरा तुम ही ठहर जाओ तो
मेरा सबकुछ ठहर जाएगा
मेरी तन्हाईयां मेरी रुसवाईयां
ये तुम पर हुए घावों का दर्द
तुम्हारे पल पल टूटते टुकड़े जर्जर

सुनो! ओ दिल..
मेरा कहा थोड़ा मान जाओ
तो इस काया से मोह छूट जाएगा
शरीर की थकन मिट जाएगी
और रूह क़ैद से आज़ाद हो जाएगी
दर्द का साया खतम हो जायेगा

सुनो! ओ दिल..
मैं थक चुकी हूं अब तुम्हारे चलने से
तुम्हारे इस लाईलाज रोग से
न तुम ठीक हो सकते हो
न मैं तुम्हें ठीक होने दे रही हूं
अब तुम्हारी बगावत ही
इस मुश्किल का हल हो पाएगा

सुनो! ओ दिल..
यहां वे लोग कहां जो तुमको समझ सकें
ये अपनी दुनिया नहीं है सही
चलो यहां से अब जी भर गया
वहीं जहां भोले लोगों का शहर हो
जो वफाओं का नगर हो
इज़्ज़त देने वाले हर घर हो

सुनो! ओ दिल..
तुम कहना नहीं किसी से
बस साथ छोड़ देना मेरा चुपचाप
मैं मिलूंगी तुम्हें आगे उस मोड़ पर
सबको अलविदा कह लेने के बाद
इस शरीर का शुक्रिया अदा करने के बाद


© ढलती_साँझ