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जींदगी चाहो तो प्रेम न करो....
फूस की आग की तरह जवानी
सबकी गुजर जाती है
डींगे प्रेम की हांकने वाले
कितने सब्जबाग दिखाते है
पर वक्त के साथ उनके वादे और इरादे
महज संवाद रह जाते है
इंसान एक ही जींदगी मे
कितने रंग जीवन के देखता है
जिस व्यक्ति के अभिमान मे जिता है, वही
उसे रीता करके शर्मिंदा भी नही होती
बेवकूफ मेरी नजर मे है वो
पर समाज मे वो एक सफल इंसान है, और
मै उसके बातो, वादो और यादों को
सहेजे जीता हूँ
बरबाद हूँ मै
पर गिला नही
रस्ते खुद ही चुना है मैने
प्रेम की बारीकियाँ हर कोई नही समझता
जमाना है यही
लोग कलेजे मे हूक नही पालते
जबतक साथ है प्रेम कहते है और करते है
ओझल हुए नही की फूंक मे उडा देते है
जींदगी मे कामयाब होने के इन दिनों फार्मूला है
आंखो से जो दिखे वही मानो
एहसास और जज्बात नही दिखते
फिर लोग उसे क्यू मानकर ढोए
और मै मानता हू कि प्रेम
वो वायु है सबके ह्रदय मे नही समाती
जो अवहेलना करे प्रेम का
उसका अपना व्यक्तिगत वजूद
राख है राख
रूह किसीका भी बेईमान नही होता
ये जो भौतिक आंखे है
ये बहुत भरमाती है सबको
इसे सांसारिक सुख ऐश्वर्य मे
लिप्त कर देती है
इसीलिए लडकियां
कभी किसीकी दीवानी नही होती
ये जिस्म और जिद दोनो से कमजोर होती है
समझदार बहुत होती है
सुख का आंकाक्षी होती है
मरता वो है
जो प्रेम के सिवा कुछ न जानता है