...

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"आओ  मैं  हूं  तैयार...."
“आओ  मैं  हूं  तैयार...”

मुक़ाबला ! मेरा तुम्हारा हो ही नहीं सकता,
ना ना, ये समझने की भूल कतई ना करना,
कि मै डर गई- नहीं बल्कि तुम समकक्ष ही कहां हो मेरे,

तुम कमज़ोर हो या यों कहूं - पहले मेरे बराबर तो होलो तुम…
बहन बेटी प्रेमिका मां… अरे कहां - ये तुम्हारे बस का नहीं,
छोड़ो ये सब… एक स्त्री ही होलो बस इतना ही बहुत है,

अब तुम जीवन जी के दिखलाओ ज़रा...
इन घुरती आंखो के बीच आ जा सकोगे तुम,
कक्षा के पुरुष सहपाठियों की घूरती आंखों का मुकाबला कर सकोगे तुम,

चलो माना - ऐ भी कर लोगो, थोड़ी बहुत छींटाकशी सहलोगे तुम,
पर क्या घर में अपने भी भाईयों से कम तर अकाना, सह सकोगे तुम,
हर क्षेत्र में उनसे आगे हो कर भी लड़की होने का उलाहना सुन सकोगे तुम,

कुछ भेद ऊपर वाले ने किया कुछ तुम जैसे कर रहे,
शादी बाद लड़कियां होती क्यों विदा - क्या विदा हो सकोगे तुम,
एक बात ना मेरी ना मां की सुन सकते हो तुम - क्या  सास की उलहाने को सुन सकोगे तुम,

अरे  उनकी तो छोड़ो तुम अपनी कहो… 
ऑफिस आने के बाद चाय देने में ज़रा सी देरी क्या हुई तो - क्या अपने खुद के उलहाने सुन सकोगे तुम,
बच्चे मुझसे ही क्यों पैदा हो रहे - क्या इसमें भागी बन सकोगे तुम,
वो असहाय पीड़ा वो बच्चे के साथ आने वाली जिम्मेदारियां झेल सकोगे तुम...

इन सब को रोज झेलती हूं मैं - क्या मेरे समकक्ष खड़े हो सकोगे तुम…
फिर भी यदि करना ही चाहते हो मुकाबला तो हूं तैयार मैं,
बस थोड़ा अपने पुरुषत्व को दूर रखो मैं हूं तैयार...
हो जाने दो मुक़ाबला आज ना मैं नारी हूं… ना तुम नर हो...

आओ  मैं  हूं  तैयार....
© दी कु पा