...

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बहरापन
चीखती आवाजें कानों को चुबती,
तुम आलसी हो, नालायक हो,
कुछ ऐसी तारीफ़े रोज मेरी,
थाली में मिलती।
उन्हे दिखता हैं सब कुछ,
हालात मेरे,
पर मेरे हालातो की वजह ना जाने,
क्यूँ नहीं पूछते।
उन्हें दिखती है चुप्पी होंठो पर मेरे,
तो मेरे चुप्पी की वजह ना जाने,
क्यूँ नहीं पूछते।
मै हँसती हू जब,
मेरे हसती हुई आँखों से,
आँसू गिरने का मतलब क्यूँ नहीं पूछते।
कानों में जब आवाजें गूंजती खुद की,
तो कहा से सुनाई दे आवाजें बाहर की,
जब खोयी खुद की खामोसी में कहीं,
तो कहा से दूसरों की आवाजों को सुनूं,
और फिर लोग कहते हैं कि,
बहरे हो क्या तुम,
तुम्हे सुनाई नहीं देता।
© shivika chaudhary