...

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नहीं था अँधेरा
उजाला  नहीं था, नहीं था अँधेरा
नहीं साँझ काली न उजला सवेरा

परिंदे नहीं थे न नभ आसमानी 
नहीं शाख कोई न कोई बसेरा

नहीं ग़म का साया ख़ुशी भी नहीं थी 
खिज़ा भी नहीं थी छुपी थी बहारा 

नहीं ज़ुम्बिशे भी कहीं हो रही थी
धरा भी...