...

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बयां-ए-हुस्न
जाने किस ओर से ये, सर्द-ए-आहे आतीं हैं
भींगी-भींगी, नर्म-ख़िरामी सी हवाए आतीं हैं
तुमने जो खोल कर लहराई हैं जुल्फ़ अपनी
महकी-महकी सी, "बाद-ए-सबाए" आतीं हैं

तेरे जैसा ना मैंने, कहीं ओर, गुल-ए-रुख़्सार देखा हैं
तेरे चेहरे में, हमने तो, यक़ीनन परवर-दिगार देखा हैं
उसकी आँखों के, शराब के समन्दर में डूब ...