...

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इश्क़ के इंतज़ार में
इश्क़ के इंतज़ार में, एक रात यूंही कटी।
ज़िन्दगी आज़ाब में, हर शाम मेरी यूंही ढली।।

बादलों की आड़ में, दिखी मुझे चाँदनी छुपी।
में लड़खड़ाई उस राह में, साथ मेरे तू नहीं।।
कशिश में थी यूं फसी कि बन्द आँखों से लगी सपने सजा।
सपनों की दुनिया अज़ीज थी, पर हक़ीक़त थी सबसे जुदा।।

रात काली हो उठी,देख बादलों की साजिश कोई।
ख़्वाब अब कमज़ोर पड़ा, मुझे बिखरता-सा मेरा वजूद दिखा।।
टूटी मैं, टूटे मेरे ख़्वाब क्योंकि लड़खड़ाया था...