...

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***** स्त्री ******
हे
स्त्री तुम ,
वाकई अद्भुत हो,
माँ ,बहन ,बेटी ,पत्नी,
हर रिश्ते को शिद्दत से जिया,
तेरी शक्ति की क्या तुलना करे कोई,
तूने तो परचम अंतरिक्ष तक फहरा दिया,
कल अबला थी तब भी कहाँ हार मानी तूने,
आज हर क्षेत्र में अपनी क्षमता का लोहा मनवाया
तूने ,माता बन संतान की ख़ातिर ,ईश्वर से लड़ जाती है,
कभी बनकर सावित्री ,पति के प्राण तू यम से भी छीन लाती है,
कभी बहन बन दलबीर सी निज भाई को इंसाफ़ दिलाती है ,
तेरी अद्भुत शक्ति के आगे तो ,वो ईश्वर भी नतमस्तक हो जाता है,
बनकर सृष्टि अभियंता , जब चलाती है सृष्टि को, वो ब्रह्मा भी शीश नवाता है,
तू तो प्रेम का गहरा सागर है, जो कभी नही खाली होता तेरा हिय ऐसी गागर है,
तू दुर्गा है , तू चंडी है ,तू लक्ष्मी का अवतार है ,तुझसे ये सँसार नही , तुझमे सारा संसार है।।

-पूनम आत्रेय










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