...

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ज़रा चाँद रुकना

नज़र भर के देखूँ ज़रा चाँद रुकना
मुझे रात भर साथ तेरे है रहना

दबी बातें दिल की किसे मैं बताऊँ
तुम्हीं से मुझे बातें दिल की है कहना

तङप को बढ़ाली लगा दिल को मैंने
नहीं था पता दर्द पड़ता है सहना

रहा करती हो तारों के बीच में तुम
मैं बाहों में भर लूँ ज़रा नीचे झुकना

न मैले कभी पाक पा हो ये तेरे
जमीं पे नहीं पाँव को "जीत" रखना

जितेन्द्र नाथ श्रीवास्तव "जीत "

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