...

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पल भर तुमसे ना मिलूं
बेचैन सा हो उठता हूं जो पल
भर तुमसे ना मिलू,

मन ही मन में घुटता हूँ,
जो पल भर तुमसे न मिलू,

ये नदिया, ये पर्वत, बे अर्थ से लगने लगते है,
ये दुनिया, ये लोग, मुझे क्यूँ व्यर्थ से लगने लगते है,

कभी शून्य मैं हो जाता हूँ,
नभ को एक टक तकता हूँ,
दिल के हाल बयाँ करने को,
कुछ भी बक बक बकता हूँ,

कभी तो ऐसा लगता है कि
सब हाथो से छूट रहा है,
तुमसँग देखा सपना मेरा
हौले हौले टूट रहा है,

जो पल भर तुमसे ना मिलू,
तो कुछ भी सोचने लगता हूँ,
जो पल भर तुमसे ना मिलू
तो खुद को टोकने लगता हूँ,

मेरा सुख,मेरी खुशिया, जैसे भस्म हो जाती है
मेरे दिल की तन्हाई मुझपर ही प्रश्न उठाती है
तुम संग बिताया लम्हा खुशियों के रंग भर जाता है,
तुमसे पल भर का वो मिलना और मेरा दिन बन जाता है।।
© Vivek

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