मधुर बचपन
#स्मृति_कविता
उड़ चला है मन पंछी बनकर बचपन की उन गलियों में,
मन में बसी उन यादों में, बालपन की अठखेलियों में।
सुनते कहानी राजा-रानी की, दादी नानी से गर्मी की उन रातों में,
निहाल हो जाना उन सब का हमारी तुतलाती बोली की बातों में।
घर-घर खेलना सखियों के संग, बनना घर की रानी,
गुड्डे गुड़ियों की शादी की यादें सुंदर मीठी सुहानी।
नवरातों में दुर्गा बन, खीर पूड़ी का प्रसाद भोग पाना,...
उड़ चला है मन पंछी बनकर बचपन की उन गलियों में,
मन में बसी उन यादों में, बालपन की अठखेलियों में।
सुनते कहानी राजा-रानी की, दादी नानी से गर्मी की उन रातों में,
निहाल हो जाना उन सब का हमारी तुतलाती बोली की बातों में।
घर-घर खेलना सखियों के संग, बनना घर की रानी,
गुड्डे गुड़ियों की शादी की यादें सुंदर मीठी सुहानी।
नवरातों में दुर्गा बन, खीर पूड़ी का प्रसाद भोग पाना,...